दिल्ली सुखनवरों का है मरकज़ मगर मियां, उर्दू के कुछ चिराग़ तो पंजाब में भी हैं - जतिन्दर परवाज़

गुरुवार, जुलाई 16, 2009

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ

ख़्वाब देखें थे घर में क्या क्या कुछ
मुश्किलें हैं सफ़र में क्या क्या कुछ

फूल से जिस्म चाँद से चेहरे
तैरता है नज़र में क्या क्या कुछ

तेरी यादें भी अहल-ए-दुनिया भी
हम ने रक्खा है सर में क्या क्या कुछ

ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ

शाम तक तो नगर सलामत था
हो गया रात भर में क्या क्या कुछ

हम से पूछो न जिंदगी 'परवाज़'
थी हमारी नज़र में क्या क्या कुछ

2 टिप्‍पणियां:

Prem Farukhabadi ने कहा…

ढूढ़ते हैं तो कुछ नहीं मिलता
था हमारे भी घर में क्या क्या कुछ

bahut hi sundar

वीनस केसरी ने कहा…

बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
बहुत बेहतरीन गजल है
पढ़वाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

वीनस केसरी