दिल्ली सुखनवरों का है मरकज़ मगर मियां, उर्दू के कुछ चिराग़ तो पंजाब में भी हैं - जतिन्दर परवाज़

सोमवार, जून 21, 2010

मंगलवार, जनवरी 05, 2010

क्या ज़रूरी है कि सब से ही मिलें प्यार के साथ

क्या ज़रूरी है कि सब से ही मिलें प्यार के साथ
दुश्मनी भी तो हो यारो कहीं दो-चार के साथ

फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ

और तो कोई भी रस्ता ही नहीं इस के सिवा
बात बढती है फ़क़त इश्क में इज़हार के साथ

क़त्लो-ग़ारत ही नज़र आते हैं हर सम्त उसे
जगता शहर है जब सुबह के अखवार के साथ

तुम जो हो असल में 'परवाज़' वो ज़ाहिर में रहो
छेड़ख़ानी न करो अपने ही किरदार के साथ

सोमवार, नवंबर 16, 2009

दूरदर्शन पर आज शाम 6 बजे


सूचना ...
जतिन्दर परवाज़ को आज शाम (Monday 16th November 2009, 06.00PM) को BAZM (URDU PROGRAMME) में dekhen

मंगलवार, नवंबर 03, 2009

आंधियों में दिया जलाऊंगा

आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा

इतना प्यासा हूँ ऐसा लगता है
इक समन्दर तो पी ही जाऊंगा

अपनी क़िस्मत संवार लूँ पहले
फ़िर तेरी ज़ुल्फ़ को सजाऊंगा

आंसुओं का बनाऊंगा दरिया
और फ़िर उस में डूब जाऊंगा

उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा

इक फ़रिश्ता ये कह गया 'परवाज़'
लौट कर एक दिन मैं आऊंगा

बुधवार, अक्तूबर 28, 2009

दिल मचल रहे हैं

दिल मचल रहे हैं
ख़्वाब पल रहे हैं

आप की गली के
लोग जल रहे हैं

शाम ढल चुकी है
और चल रहे हैं

धूप चुभ रही है
दिन बदल रहे हैं

बदलो कहाँ हो
खेत जल रहे हैं

मंगलवार, अक्तूबर 06, 2009

सूरज-चन्दा जैसे रौशन

सूरज-चन्दा जैसे रौशन
हो जाएँ दिल सब के रौशन

आप जो मेरे साथ चलेंगे
हो जाएँगे रस्ते रौशन

दिल को रौशन करने वाले
मेरा घर भी कर दे रौशन

खिड़की से कुछ जुगनू आकर
कर जाते हैं कमरे रौशन

इक दीपक के जल जाने से
दीवारो-दर सारे रौशन

चाँद सा चेहरा कब आएगा
मेरे घर को करने रौशन