आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा
इतना प्यासा हूँ ऐसा लगता है
इक समन्दर तो पी ही जाऊंगा
अपनी क़िस्मत संवार लूँ पहले
फ़िर तेरी ज़ुल्फ़ को सजाऊंगा
आंसुओं का बनाऊंगा दरिया
और फ़िर उस में डूब जाऊंगा
उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा
इक फ़रिश्ता ये कह गया 'परवाज़'
लौट कर एक दिन मैं आऊंगा
6 टिप्पणियां:
बेहतरीन ग़ज़ल ... हर शेर लाजबाब
उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा
बहुत खूब...वाह...बहुत अच्छी ग़ज़ल....
नीरज
क्या बात है जतिंदर भाई...क्या बात है!
कमाल का मतला...और अच्छे शेर बुने हैं!
Jatinder Ji,
Bahut pyari rachna hai...
आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा
इतना प्यासा हूँ ऐसा लगता है
इक समन्दर तो पी ही जाऊंगा
अपनी क़िस्मत संवार लूँ पहले
फ़िर तेरी ज़ुल्फ़ को सजाऊंगा
Badhai ...
Surinder
जतिन्दर परवाज़ साहब,
अच्छा कलाम पढने को मिला
मुबारकबाद
ये शेर मुझे पसंद आया
उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा
उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा
jatinder sahab ,aaj pahli baar aapka kalaam padhaa ,bahut khoob ,khaas taur par ye do sher mujhe bahut pasand aaye.
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