दिल्ली सुखनवरों का है मरकज़ मगर मियां, उर्दू के कुछ चिराग़ तो पंजाब में भी हैं - जतिन्दर परवाज़

मंगलवार, नवंबर 03, 2009

आंधियों में दिया जलाऊंगा

आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा

इतना प्यासा हूँ ऐसा लगता है
इक समन्दर तो पी ही जाऊंगा

अपनी क़िस्मत संवार लूँ पहले
फ़िर तेरी ज़ुल्फ़ को सजाऊंगा

आंसुओं का बनाऊंगा दरिया
और फ़िर उस में डूब जाऊंगा

उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा

इक फ़रिश्ता ये कह गया 'परवाज़'
लौट कर एक दिन मैं आऊंगा

6 टिप्‍पणियां:

शोभित जैन ने कहा…

बेहतरीन ग़ज़ल ... हर शेर लाजबाब

नीरज गोस्वामी ने कहा…

उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा

बहुत खूब...वाह...बहुत अच्छी ग़ज़ल....
नीरज

गौतम राजऋषि ने कहा…

क्या बात है जतिंदर भाई...क्या बात है!

कमाल का मतला...और अच्छे शेर बुने हैं!

SURINDER RATTI ने कहा…

Jatinder Ji,
Bahut pyari rachna hai...
आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा

इतना प्यासा हूँ ऐसा लगता है
इक समन्दर तो पी ही जाऊंगा

अपनी क़िस्मत संवार लूँ पहले
फ़िर तेरी ज़ुल्फ़ को सजाऊंगा
Badhai ...
Surinder

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

जतिन्दर परवाज़ साहब,
अच्छा कलाम पढने को मिला
मुबारकबाद
ये शेर मुझे पसंद आया
उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

आंधियों में दिया जलाऊंगा
मैं हवाओं को आजमाऊंगा

उस को खुश देखने की चाहत में
उस के हाथों मैं हार जाऊंगा

jatinder sahab ,aaj pahli baar aapka kalaam padhaa ,bahut khoob ,khaas taur par ye do sher mujhe bahut pasand aaye.