दिल्ली सुखनवरों का है मरकज़ मगर मियां, उर्दू के कुछ चिराग़ तो पंजाब में भी हैं - जतिन्दर परवाज़

मंगलवार, जनवरी 05, 2010

क्या ज़रूरी है कि सब से ही मिलें प्यार के साथ

क्या ज़रूरी है कि सब से ही मिलें प्यार के साथ
दुश्मनी भी तो हो यारो कहीं दो-चार के साथ

फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ

और तो कोई भी रस्ता ही नहीं इस के सिवा
बात बढती है फ़क़त इश्क में इज़हार के साथ

क़त्लो-ग़ारत ही नज़र आते हैं हर सम्त उसे
जगता शहर है जब सुबह के अखवार के साथ

तुम जो हो असल में 'परवाज़' वो ज़ाहिर में रहो
छेड़ख़ानी न करो अपने ही किरदार के साथ

5 टिप्‍पणियां:

श्रद्धा जैन ने कहा…

फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ

waah khoobsurat sher
shaandaar gazal

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ

शे'र पसंद आये. अभी ३ दिन पहले मिला था दिल्ली संगम में.

daanish ने कहा…

bahut hi kaamyaab
aur shaandaar gzl kahee hai aapne
aur ye sher,,,
फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ
khaas taur pr bahut pasand aaya
mubarakbaad

इस्मत ज़ैदी ने कहा…

jatindar sahab,

फेसला जंग का शमशीर नहीं कर सकती
चाहिए ख़ून में ग़ेरत भी तो तलवार के साथ

subhaan allah ,bahut khoob haasile ghazal hai ye sher ,

क़त्लो-ग़ारत ही नज़र आते हैं हर सम्त उसे
जगता शहर है जब सुबह के अखवार के साथ

aaj ki haqeeqat ko bayaan karta hai ye sher ,mubarakbaad ke mustahaq hain aap.

Unknown ने कहा…

Nice lines and they make you think too.

Keep your good work coming.