क्यों खड़ी हम ने की हैं दीवारें
दूर जब कर रही हैं दीवारें
जैसे कोई सवाल करता है
इस तरह देखती हैं दीवारें
अब मुलाक़ात भी नहीं मुमकिन
दरमियाँ आ गई हैं दीवारें
इक झरोका भी इन में रख लेना
रौशनी रोकती हैं दीवारें
बारिशों ने गिरा दिया छप्पर
सिर्फ़ अब रह गई हैं दीवारें
लग के दीवानों-ओ-दर से रोता हूँ
और मुझे देखती हैं दीवारें
कितना दुशवार है सफ़र 'परवाज़'
हर क़दम पर उठी हैं दीवानें
5 टिप्पणियां:
wah......
वल्लाह बेहद ख़ूबसूरत अशआर
अरे वाह....ये शख्स भी मेरी तरह "पगला"
है....हाँ मगर इसके भीतर इक जलवा है....!!
इक झरोका भी इन में रख लेना
रौशनी रोकती हैं दीवारें
bahut khoobsurat sher
जैसे कोई सवाल करता है
इस तरह देखती हैं दीवारें
bahut hi taseer hai har sher mein
DeviNnangrani
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