दिल्ली सुखनवरों का है मरकज़ मगर मियां, उर्दू के कुछ चिराग़ तो पंजाब में भी हैं - जतिन्दर परवाज़

सोमवार, अगस्त 10, 2009

यूँ ही उदास है दिल बेक़रार थोड़ी है

यूँ ही उदास है दिल बेक़रार थोड़ी है
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है

नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है

मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है

खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है

न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है

4 टिप्‍पणियां:

अनूप शुक्ल ने कहा…

बड़े शानदार शेर कह डाले भैये।

Unknown ने कहा…

bhai waah waah
gazab ki kahan....................
gazab ki ghazal

saare she'r ek se badhkar ek................
badhaai !

संजीव गौतम ने कहा…

न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है
जी चुरा लिया जतिन्दर भाई इस शेर ने हालांकि पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है. कसी हुई बहुत बढिया.

ओम आर्य ने कहा…

नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है

badi hi sundar bhaw liye huye ye panktiya......bahut badhaee