यूँ ही उदास है दिल बेक़रार थोड़ी है
मुझे किसी का कोई इंतज़ार थोड़ी है
नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है
मुझे भी नींद न आए उसे भी चैन न हो
हमारे बीच भला इतना प्यार थोड़ी है
खिज़ा ही ढूंडती रहती है दर-ब-दर मुझको
मेरी तलाश मैं पागल बहार थोड़ी है
न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है
4 टिप्पणियां:
बड़े शानदार शेर कह डाले भैये।
bhai waah waah
gazab ki kahan....................
gazab ki ghazal
saare she'r ek se badhkar ek................
badhaai !
न जाने कौन यहाँ सांप बन के डस जाए
यहाँ किसी का कोई एतबार थोड़ी है
जी चुरा लिया जतिन्दर भाई इस शेर ने हालांकि पूरी ग़ज़ल ही उम्दा है. कसी हुई बहुत बढिया.
नज़र मिला के भी तुम से गिला करूँ कैसे
तुम्हारे दिल पे मेरा इख्तियार थोड़ी है
badi hi sundar bhaw liye huye ye panktiya......bahut badhaee
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